न ख़ुशी दे तो कुछ दिलासा दे दोस्त जैसे हो मुझ को बहला दे आगही से मिली है तन्हाई आ मिरी जान मुझ को धोका दे अब तो तकमील की भी शर्त नहीं ज़िंदगी अब तो इक तमन्ना दे ऐ सफ़र इतना राएगाँ तो न जा न हो मंज़िल कहीं तो पहुँचा दे तर्क करना है गर तअ'ल्लुक़ तो ख़ुद न जा तू किसी से कहला दे