न ख़ुशी से हमें न ग़म से ग़रज़ है मगर एक उस सनम से ग़रज़ न हमें जाम से न ख़ुम से ग़रज़ यार रखते हैं अपने दम से ग़रज़ नहीं पर्वा कोई जिए कि मरे है उन्हें रात-दिन सितम से ग़रज़ जो कि शाकिर हैं अपनी क़िस्मत पर नहीं कुछ उन को बेश-ओ-कम से ग़रज़ हम रसूल-ए-ख़ूदा की उम्मत हैं है हमें शाफ़ा-ए-उमम से ग़रज़ और तसद्दुक़ से उस के रखते हैं अपने अल्लाह के हम करम से ग़रज़ 'ऐश' जो उस निगह के आशिक़ हैं उन को क्या ख़ंजर-ए-दो-दम से ग़रज़