न कोई फ़ाल निकाली न इस्तिख़ारा किया बस एक सुब्ह यूँही ख़ल्क़ से किनारा किया निकल पड़ेंगे घरों से तमाम सय्यारे अगर ज़मीन ने हल्का सा इक इशारा किया जो दिल के ताक़ में तू ने चराग़ रक्खा था न पूछ मैं ने उसे किस तरह सितारा किया पराई आग को घर में उठा के ले आया ये काम दिल ने बग़ैर उजरत ओ ख़सारा किया अजब है तू कि तुझे हिज्र भी गराँ गुज़रा और एक हम कि तिरा वस्ल भी गवारा किया हमेशा हाथ रहा है 'जमाल' आँखों पर कभी ख़याल कभी ख़्वाब पर गुज़ारा किया