नगर नगर मेले को गए कौन सुनेगा तेरी पुकार ऐ दिल ऐ दीवाने दिल! दीवारों से सर दे मार रूह के इस वीराने में तेरी याद ही सब कुछ थी आज तो वो भी यूँ गुज़री जैसे ग़रीबों का त्यौहार उस के वार पे शायद आज तुझ को याद आए हों वो दिन ऐ नादान ख़ुलूस कि जब वो ग़ाफ़िल था हम हुश्यार पल पल सदियाँ बीत गईं जाने किस दिन बदलेगी एक तिरी आहिस्ता-रवी एक ज़माने की रफ़्तार पिछली फ़स्ल में जितने भी अहल-ए-जुनूँ थे काम आए कौन सजाएगा तेरी मश्क़ का सामाँ अब की बार? सुब्ह के निकले दीवाने अब क्या लौट के आएँगे डूब चला है शहर में दिन फैल चला है साया-ए-दार