न कुछ तकरार तुम को है न कुछ शिकवा हमारा है ये दिल क्या चीज़ है अब जान तक देना गवारा है दम-ए-रफ़्तार उठा फ़ित्ने क़यामत का इशारा है तिरा मुँह देखना ख़ुर्शेद-ए-महशर को नज़ारा है वो मह-रू ऐ फ़लक फिरता है हर शब मेरी आँखों में तसव्वुर ने मिरे ग़म-ख़ाने में इक चाँद तारा है सर-ए-बालीं न पाया तुझ को ऐ ईसा तो घबरा कर शब-ए-फ़ुर्क़त में इज़राईल को हम ने पुकारा है फ़लक क़ातिल है तेग़-ए-माह-ए-नौ के ज़ख़्म हैं तन पर शफ़क़ है ख़ूँ हमारा चाँदनी ने हम को मारा है बजा है तुझ से ऐ बुत ख़ल्क़ को दा'वा मोहब्बत का ख़ुदा वाहिद है पर हर शख़्स कहता है हमारा है मैं हूँ ऐ हम-सफ़ीर-ए-बुलबुल-ए-ज़ार इस गुलिस्ताँ का जो ठेके में है सय्यादों के गुलचीं का इजारा है न पूछो हाल कुछ दिल की लगी का मुझ जले तन की जहन्नुम जिस को कहते हैं वो इस का इक शरारा है सियह-कारी ही मैं ने उम्र भर की तीरा-बख़्ती से तिरा हाल-ए-सियह क्या मेरी क़िस्मत का सितारा है मुझे भी पार उतरना है डुबो कर कश्ती-ए-तन को किनारा गोर का गर बहर-ए-उल्फ़त का किनारा है गिरा हूँ क्या जुदाई में ब-ज़ोर-ए-ना-तवानी से न ताक़त आह करने की न उफ़ करने का यारा है निकलता है मिरा दम मज्मा-ए-याराँ है बालीं पर न मुँह से बात होती है न आँखों से इशारा है फ़रोग़-ए-ख़ाल रू-ए-आतिशीं पर हो नहीं मुमकिन कहीं ख़ुर्शेद के भी सामने चमका सितारा है बनाया दाना-ए-अँगूर का कंठा है मस्ती में चमन में बहर-ए-मय-ख़्वारी किया जब इस्तिख़ारा है किसी सूरत मिरी बख़्शिश नहीं ऐ 'अर्श' है मुमकिन पयम्बर का वसीला अब्र-ए-रहमत का सहारा है