न मेरे दिल ने न इदराक नुक्ता-जू ने किया ख़ुदा गवाह है जो कुछ किया वो तू ने किया फ़रेफ़्ता मुझे आलम के रंग-ओ-बू ने किया बड़ा सितम तिरे मिलने की आरज़ू ने किया लिहाज़-ए-दामन-ए-क़ातिल मिरे लहू ने किया ख़याल-ए-शर्त-ए-अदब ख़ुद रग-ए-गुलू ने किया ख़ुद अपनी ज़ीस्त का पर्दा था जब अलग ये हुआ हिजाब दूर जमाल-ए-रुख़-ए-निकू ने किया बहार आई तो क्या ना-शगुफ़्ता-ख़ातिर को फ़सुर्दा और भी इस मौसम-ए-नुमू ने किया हरीम-ए-क़ुद्स में पहुँचाएगी शहादत ख़ुद कि मेरी रूह को ताहिर मिरे लहू ने किया तुम्हारी चारागरी को सलाम है मेरा कि एक ज़ख़्म को सौ ज़ख़्म इक रफ़ू ने किया वो क्यूँकर आ के मिले ख़ुद ये हाल मुझ से न पूछ बराए-मक़्सद-ए-दिल तर्क आरज़ू ने किया जो ज़ाहिदों ने न बातिन को धो के साफ़ किया तो कोई काम न ज़ाहिर की शुस्त-ओ-शू ने किया जुज़ अपने दिल के न पाया किसी ने उस का निशाँ हज़ार अक़्ल को आवारा जुस्तुजू ने किया बड़ी उमीद बंधी बे-बसों को महशर में अजब करिश्मा तिरे तर्ज़-ए-गुफ़्तुगू ने किया कहूँगा यार से मैं साफ़ साफ़ हश्र के दिन कि मुझ से हिज्र में जो कुछ हुआ वो तू ने किया बजा रहे न मिरे अक़्ल-ओ-होश ऐ 'बेताब' ग़ज़ब का मस्त मुझे पहले ही सुबू ने किया