न नींद है न ख़्वाब है न याद है न रात है ज़मीं न आसमान है ज़माँ न काएनात है ये जिस्म-ओ-जाँ का क़ाफ़िला है रास्ता पे कौन से न मंज़िलों की आस है न रहरवों का साथ है उमीद ओ आरज़ू के रंग क्यूँ फीके लग रहे हैं अब कमी है आब-ओ-गिल में कुछ लहू में कोई बात है है उन के वास्ते तमाम फ़त्ह-ओ-कामरानियाँ मिरे लिए हमेशा से जो है तो सिर्फ़ मात है मैं लहज़ा लहज़ा कट के गिर रहा हूँ अंधी खाई में ये ज़िंदगी का रास्ता नहीं है पुल-सिरात है है वस्ल अपने-आप से फ़िराक़ अपने-आप से नहीं है कोई भी यहाँ बस एक मेरी ज़ात है 'मामून' अज़ल से ता-अबद नहीं है कोई रौशनी ख़ला में दूर दूर तक बस इक अज़ीम रात है