रौशनी रंगों में सिमटा हुआ धोका ही न हो मैं जिसे जिस्म समझता हूँ वो साया ही न हो आईना टूट गया चुनता हूँ रेज़ा रेज़ा इसी आईने में मेरा कहीं चेहरा ही न हो मैं तो दीवार के इस पार रवाँ हूँ कब से कोई दीवार के उस पार भी चलता ही न हो वो जो सुनता है मिरी बात बड़े ग़ौर के साथ बाद जाने के मिरे मुझ पे वो हँसता ही न हो जागती आँखों में क्यूँ फैलता जाता है ख़ला खा गई है जिसे दूरी तिरा रस्ता ही न हो मोड़ हर राह पे पाँव से लिपट जाते हैं वो मुझे छोड़ के चल दे कहीं ऐसा ही न हो उस के मिलने पे भी महसूस हुआ है 'सरमद' उस ने देखा ही न हो मैं ने बुलाया ही न हो