न पूछ देख के कितना मलाल होता है जो ख़्वाब देखने वालों का हाल होता है लबों पे मोहर-ए-ख़मोशी लगाई जाती है और इस के ब'अद हमीं से सवाल होता है जब आई शाम-ए-मसाफ़त तो फिर ये राज़ खुला ज़रा सी देर उरूज ओ ज़वाल होता है हर एक शख़्स की अपनी ही एक दुनिया है कहाँ किसी को किसी का ख़याल होता है हर एक औज-ए-मोहब्बत पे आ नहीं सकता किसी किसी में ही ऐसा कमाल होता है रुकी हुई हूँ इक ऐसे सवाल पर 'शबनम' जवाब जिस का हमेशा मुहाल होता है