न पूछ ख़्वाब ज़ुलेख़ा ने क्या ख़याल लिया कि कारवाँ का कनआँ' के जी निकाल लिया रह-ए-तलब में गिरे होते सर के बल हम भी शिकस्ता-पाई ने अपनी हमें सँभाल लिया रहूँ हूँ बरसों से हम दोश पर कभू उन ने गले मैं हाथ मिरा प्यार से न डाल लिया बुताँ की 'मीर' सितम वो निगाह है जिस ने ख़ुदा के वास्ते भी ख़ल्क़ का वबाल लिया