न पूछ मेरी कहानी कहाँ से निकली है ये दास्ताँ भी तिरी दास्ताँ से निकली है जिगर को चीर लिया शौक़ में चटानों ने सदा-ए-इश्क़ जब आब-ए-रवाँ से निकली है सभी पे ख़ौफ़ मुसल्लत था ना-ख़ुदाओं का जो बात हक़ थी हमारी ज़बाँ से निकली है छुआ है तुझ को तो मेरा सुलग उठा है बदन ये कैसी आँच तिरे जिस्म-ओ-जाँ से निकली है फ़लक के सारे नज़ारे हुए हैं हल्क़ा-ब-गोश बरात किस की दर-ए-कहकशाँ से निकली है