शुक्र उस ने किया लब पे मगर नाम न आया मरना भी मिरा हाए मिरे काम न आया अल्लाह शब-ए-हिज्र फिर ऐसी न दिखाए घड़ियों तो मुझे याद तिरा नाम न आया ये तर्ज़-ए-जफ़ा किस सिखाई थी सितम-गर सौ ज़ुल्म हुए एक भी इल्ज़ाम न आया बुत-ख़ाना तो बुत-ख़ाना है अल्लाह-री क़िस्मत काबा से भी 'माइल' कभी नाकाम न आया