न पूछो वज्ह मेरी चश्म-ए-तर की मियाँ फिर गिर गई दीवार घर की ये माना धुल गया सूरज सरों से मिरे आँगन की धूप अब तक न सर की जबीं तर ख़ुश्क-लब तलवों में छाले यही रूदाद है अपने सफ़र की बदी नेकी इज़ाफ़ी मसअले हैं हुकूमत है दिलों पर सिर्फ़ डर की गुमानों का मुक़द्दर है भटकता यक़ीं ने हर मुहिम दुनिया की सर की न साया है न शाख़ों में समर हैं ज़रूरत क्या है अब सूखे शजर की झुलसती धूप बारिश सर्द रातें ब-हर-सूरत 'ज़िया' हम ने बसर की