न रहा गुल न ख़ार ही आख़िर इक रहा हुस्न-ए-यार ही आख़िर अब जो छूटे भी हम क़फ़स से तो क्या हो चुकी वाँ बहार ही आख़िर आतिश-ए-दिल पे आब ले दौड़ा दीदा-ए-अश्क-बार ही आख़िर ज़िद से नासेह की मैं ने कर डाला जेब को तार तार ही आख़िर क्यूँ न हूँ तेरे दर पे होना है एक दिन तो ग़ुबार ही आख़िर काम आया न जाए शम-ए-मज़ार ये दिल-ए-दाग़-दार ही आख़िर शम्अ-रू पर मिसाल-ए-परवाना हो गए हम निसार ही आख़िर वो न आया इधर 'हसन' अफ़सोस रह गया इंतिज़ार ही आख़िर