रंगों की वहशतों का तमाशा थी बाम-ए-शाम तारी था हर मकाँ पे जलाल-ए-दवाम-ए-शाम गुलदस्ता-ए-जिहात था नैरंग-ए-राह-ए-इश्क़ था इक तिलिस्म-ए-हुस्न-ए-ख़याबान-ए-दाम-ए-शाम आगे की मंज़िलों की तरफ़ शाम का सफ़र जैसे शबों के दिल में था शहर-ए-क़याम-ए-शाम बाँधे हुए हैं वक़्त सभी उस के हुक्म में है जिस ख़ुदा के हाथ में कार-ए-निज़ाम-ए-शाम धुँदला गई है शाम शब-ए-ख़ाम से 'मुनीर' ख़ाली हुआ कशिश की शराबों से जाम-ए-शाम