न समझे कोई उस से दुश्मनी है मिरी इक कम-सुख़न से दोस्ती है सभी के काम आए इब्न-ए-आदम यही दर-अस्ल हुस्न-ए-ज़िंदगी है जिसे पढ़ना हो इस में पढ़ ले सब कुछ खुली मेरी किताब-ए-ज़िंदगी है मिरे किस काम का ऐसा समुंदर लब-ए-साहिल भी जिस के तिश्नगी है हो रूदाद-ए-ज़माना की जो मज़हर वही दर-अस्ल रूह-ए-शाएरी है मिरे दिल पर है जिस की हुक्मरानी अभी उस में अदा-ए-कम-सिनी है है जिस का आज गिरवीदा ज़माना जहान-ए-रंग-ओ-बू ये आरज़ी है अजम की तरह है गूँगा अरब भी ये उस की मस्लहत या बे-हिसी है नहीं फ़ुर्सत तन-आसानी से उस को अलम-अंगेज़ ये आदम-कुशी है बपा है हश्र से पहले ही महशर कहीं दुख़्तर कहीं मादर पड़ी है कोई शतरंज-बाज़ी में है मशग़ूल किसी की जान पर अपनी बनी है दुआ-ए-अहल-ए-ग़ज़्ज़ा सुन ले यारब मुसीबत की ये इक ऐसी घड़ी है उन्हें है सिर्फ़ तेरा ही सहारा जहाँ भाई से भाई अजनबी है अगर इस में हो 'बर्क़ी' आदमियत फ़रिश्तों से भी अफ़ज़ल आदमी है