रक़ीब-ए-नफ़्स का मुख मोड़ता रह हवा और हिर्स के तईं तोड़ता रह उठा संग-ए-रियाज़त दस्त-ए-दिल सूँ सदा शीशे को तन के तोड़ता रह शुजाअत साथ ले कर ज़िक्र का तेग़ सड़क ग़फ़लत के दिल पर छोड़ता रह लगाया है अगर रिश्ता प्रित का नज़र के सिलसिले सूँ जोड़ता रह 'अलीमुल्लाह' होवे एक दम दूर ये बद-ख़स्लत को यक यक तोड़ता रह