न शरह-ए-शौक़ न तस्कीन जान-ए-ज़ार में है मज़ा जो अपनी मोहब्बत के ए'तिबार में है अभी से होश न खो बैठ ऐ नसीम-ए-चमन अभी तो एक शिकन ज़ुल्फ़-ए-ताबदार में है ख़ुद अपने इश्क़ की रंगीनियों में गुम हो जा नहीं कुछ और अगर ये तो इख़्तियार में है ये महवियत कोई देखे कि मिस्ल-ए-आईना जुनून-ए-ख़ुद-निगरी अपने इंतिज़ार में है न है नसीब मिली और ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मिली सुपुर्दगी की जो इक शान इख़्तियार में है हरीफ़-ए-बज़्म-ए-तमाशा तिरी निगाह नहीं वगरना हुस्न तो ख़ुद तेरे इंतिज़ार में है 'असर' मुझे है वहाँ रुख़्सत-ए-नवा-संजी कि नग़्मा इक लब-ए-ख़ामोश जब दयार में है