ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं अपनी तक़दीर का क़ौमें जो गिला करती हैं रेत पर जब भी बनाता है घरौंदा कोई सर-फिरी मौजें उसे देख लिया करती हैं मैं गुलिस्ताँ की हिफ़ाज़त की दुआ करता हूँ बिजलियाँ मेरे नशेमन पे गिरा करती हैं जाने क्या वस्फ़ नज़र आता है मुझ में उन को तितलियाँ मेरे तआ'क़ुब में रहा करती हैं तेरी दहलीज़ से निस्बत जिसे हो जाती है अज़्मतें उस के मुक़द्दर में हुआ करती हैं क्यूँ न गुल-बूटों के चेहरों पे निखार आ जाए ये हवाएँ जो तिरा ज़िक्र किया करती हैं अपनी नज़रों में जो रखता है तिरे नक़्श-ए-क़दम मंज़िलें उस के तआ'क़ुब में रहा करती हैं चैन की नींद मुझे आए तो कैसे आए मेरी आँखें जो तिरा ख़्वाब बुना करती हैं उस की रहमत के दिए जो भी हैं रौशन 'अफ़ज़ल' आँधियाँ उन की हिफ़ाज़त में रहा करती हैं