न ये पूछिए मुझ से क्या चाहती हूँ मैं इक बेवफ़ा से वफ़ा चाहती हूँ नज़र साफ़ आए न तस्वीर जिस में मैं वो आइना तोड़ना चाहती हूँ जो तन्क़ीद करते हैं मेरी वफ़ा पर मैं उन से सबूत-ए-वफ़ा चाहती हूँ कहीं साथ तो छोड़ देंगे न मेरा मैं ये आप से पूछना चाहती हूँ ज़माने को है चाँद तारों की ख़्वाहिश मगर मैं तिरी गर्द-ए-पा चाहती हूँ करम पर करम क्यों हैं लोगों के मुझ पर मैं इस बारे में सूचना चाहती हूँ नहीं चाहिए मुझ को दुनिया की दौलत मोहब्बत की दिलकश फ़ज़ा चाहती हूँ यक़ीनन 'अना' मुझ को मंज़िल मिलेगी बुज़ुर्गों से अपने दुआ चाहती हूँ