न फ़ज़ा-ए-इश्क़ में कैफ़ है न वो हुस्न-ए-जल्वा-ए-यार है न तजल्लियों में मज़ा रहा न वो ज़ोर-ए-बर्क़-ओ-शरार है न घटा उठी न हवा चली न ख़लिश मिटी न कली खिली ये फ़रेब-ए-जल्वा-ए-ज़ौक़ है ये तिलिस्म-ए-शौक़-ए-बहार है कभी अश्क बाइ'स-ए-रंज-ओ-ग़म कभी आह मौजिब-ए-सद-अलम न ये अश्क वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न ये आह वज्ह-ए-क़रार है जो असीर-ए-रंज-ओ-अलम नहीं जो फ़िदा-ए-उल्फ़त-ओ-ग़म नहीं न वो क़द्र-दान-ए-जमाल-ए-गुल न वो आश्ना-ए-बहार है जो करम हुआ तो सितम नहीं जो सितम हुआ तो करम नहीं ये अजीब मस्लक-ए-हुस्न है ये अजब अदा का शिआ'र है न तो रुत फिरी न कँवल खिला न वो दौर-ए-साग़र-ए-मय चला यही कह के बाग़ से वो उठा जो अदा-शनास-ए-बहार है वही रंज-ओ-ग़म हैं मुझे 'वफ़ा' वही सोज़ भी वही साज़ भी न सुकून है न सुकूत है न शकेब है न क़रार है