न जाने किस से बिछड़े थे हम ऐसे ज़माने भर ने दिल रक्खा हमारा सदा गूँजी मगर ख़ाली ही लौटी निशाना फिर नहीं चूका हमारा तसव्वुफ़ की जो सुनते कुछ ना करते किसी जंगल में दिल लगता हमारा तवाज़ुन माँगने आया था सूरज बनाना पड़ गया साया हमारा ज़माना सो गए थे तब जगे हम कोई सपना नहीं टूटा हमारा शजर थे काट के लाए गए हम जहाँ में खो गया क़िस्सा हमारा सुख़न से उस की हैरत छीन लेगा मुक़र्रर वक़्त पर मरना हमारा