न काम आई अगर आगही तो क्या होगा बदल सकी न अगर ज़िंदगी तो क्या होगा न छेड़ बाद-ए-सबा इस क़दर न छेड़ उसे हँसी हँसी में कली रो पड़ी तो क्या होगा ख़िरद के सारे मसाइल धरे न रह जाएँ जो ज़िद जुनूँ को कहीं आ गई तो क्या होगा अना-परस्त न बन ज़िंदगी तबाह न कर जो घर से तेरे बग़ावत उठी तो क्या होगा सदा पुराने तअ'ल्लुक़ सँभाल कर रक्खो ये माल-ओ-ज़र भी न देंगे ख़ुशी तो क्या होगा