न कर दिल को दाग़ी गुल-ए-आरज़ू का फिरे है कहाँ मान कहना किसू का हमें भी दिखा दे इलाही कोई याँ परी-ज़ाद बेदाद शो'ला भबूका रहा दामन-ए-गुल पे नित ख़ून-ए-बुलबुल सलीक़ा है शबनम को क्या शुस्त-ओ-शू का उन्हें ना-कसों से बहुत कम है सोहबत जिन्हें जूँ-गुहर पास है आबरू का खुली आँख गुल की तो क्या उस ने देखा निपट तंग अर्सा है याँ रंग-ओ-बू का कभी काम ऐसा न हम से हुआ याँ जिसे देख बोला न हो कोई चूका बग़ल में उसे छोड़ फिरता है दर-दर दिवाना हूँ 'फ़िद्वी' तिरी जुस्तुजू का