ना मौत हिज्र में आई न मुझ को ख़्वाब आया ये किस अज़ाब में मैं हूँ ये क्या अज़ाब आया पस-अज़-फ़ना मिरे लाशे को पाएमाल किया ये दिल में क्या तिरे ऐ ख़ानुमाँ-ख़राब आया तवाफ़-ए-काबा का हम को सवाब ख़ाक हुआ क़दम क़दम पे ख़याल-ए-ख़ुम-ए-शराब आया हज़ार दा'वे हैं दर-पर्दा ज़ुल्म करने पर ग़ज़ब हुआ जो वो महशर में बे-नक़ाब आया ख़ता अदू की जफ़ा मुझ पे मुंसिफ़ी यही है ये क्या ख़याल तुझे शोख़ पुर-इ'ताब आया इलाही आज हुआ क्या वगर्ना था ये था उधर गया मिरा ख़त और इधर जवाब आया हुआ है सीने में शायद जिगर दो पारा 'हया' बजाए अश्क जो आँखों से ख़ून-ए-नाब आया