क्यों हश्र बपा आह ख़ुदाया नहीं होता क्या क्या नहीं सहता हूँ मैं क्या क्या नहीं होता मजनूँ की तरह से मुझे सौदा नहीं होता मैं भूले रवाना सू-ए-सहरा नहीं होता गिर्यां सिफ़त-ए-अब्र हूँ मुज़्तर सिफ़त-ए-बर्क़ इस लुत्फ़ पे तू महव-ए-तमाशा नहीं होता फ़िरऔन हुआ है वो मिरे हक़ का ख़ुदाया क्यों नाला असा-ए-कफ़-ए-मूसा नहीं होता हाल-ए-दिल-ए-बेताब तड़पने से नहीं कुछ माशूक़ के आने पे इजारा नहीं होता इक़रार-ए-शब-ए-वस्ल पे ये तूल अरे ज़ालिम दम भर के भी जीने का भरोसा नहीं होता मालूम हो तुझ को अरे ज़ालिम प करूँ क्या महशर मिरी तक़दीर से बरपा नहीं होता क्यों महव-ए-तमाशा है मिरी लाश पे आलम कह दो कोई मरता है तमाशा नहीं होता नाकाम-ए-शहादत हैं वो ऐ हम-नफ़साँ हम ख़ंजर के तले काम हमारा नहीं होता अज़-बस वो सियह-कार-ए-हया हूँ मैं तह-ए-ख़ाक गाहे मिरे मरक़द में उजाला नहीं होता