न रोक ऐ चारागर इस मुज़्तरिब को चीख़ लेने दे ये वो नाला है मर जाता है जिस का रोकने वाला गया वो वक़्त जब तेरी वफ़ाओं की तमन्ना थी सितमगर हम ने अंदाज़-ए-तबीअत ही बदल डाला इलाही जब मुझे सच्ची मोहब्बत तू ने बख़्शी है तो पैदा कर कोई मेरी वफ़ा का देखने वाला तुम्हें समझा रहा हूँ हो सके जब तक मुझे रोको जो निकली आह दिल से कौन है फिर रोकने वाला मैं अपने क़त्ल का इल्ज़ाम अपने सर पे ले लूँगा मगर ये तो बता दो तुम ने वो दामन तो धो डाला 'मुनीर' अच्छा ज़रीया है अलाएक़ क़त्अ करने का अजल का आसरा गोया है जाँ का पालने वाला