न सोचा न समझा न सीखा न जाना मुझे आ गया ख़ुद-ब-ख़ुद दिल लगाना ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना सिमट कर कहीं आ न जाए ज़माना ज़बाँ पर लगी हैं वफ़ाओं की मोहरें ख़मोशी मिरी कह रही है फ़साना गुलों तक रसाई तो आसाँ है लेकिन है दुश्वार काँटों से दामन बचाना करो लाख तुम मातम-ए-नौजवानी 'क़दीर' अब नहीं आएगा गुज़रा ज़माना