न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए By Ghazal << इधर कुछ और कहती है उधर कु... उस गुल-बदन का राज़ बहारों... >> न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए तिरा वजूद है अब सिर्फ़ दास्ताँ के लिए पलट के सू-ए-चमन देखने से क्या होगा वो शाख़ ही न रही जो थी आशियाँ के लिए ग़रज़-परस्त जहाँ में वफ़ा तलाश न कर ये शय बनी थी किसी दूसरे जहाँ के लिए Share on: