उस गुल-बदन का राज़ बहारों से पूछिए फूलों से पूछिए कि नज़ारों से पूछिए हर दम यक़ीं ख़ुदा पे ही रखिए तमाम उम्र अहवाल-ए-ज़ीस्त अपना न तारों से पूछिए कासा-ब-दस्त कितने हैं शहरों में गाँव में ग़ुर्बत की लम्बी लम्बी क़तारों से पूछिए लब खोलने में होता है रुस्वाइयों का डर जो कुछ भी पूछना है इशारों से पूछिए आएगा कब किसी को यक़ीं मेरी बात पर मेरी हक़ीक़तें मिरे यारों से पूछिए 'साहिर' न उन से पूछिए जिन को नहीं है क़द्र क्या शय है माँ ये माँ के दुलारों से पूछिए