नाम से तेरे जो रौशन मतला-ए-दीवाँ हुआ हर वरक़ ख़ुर्शेद के मानिंद नूर-अफ़शाँ हुआ तेरी ही क़ुदरत से पैदा है ज़मीन-ओ-आसमाँ ख़ाक का पुतला तजल्ली से तिरी इंसाँ हुआ तेरे अब्र-ए-फ़ैज़ से ताज़ा है बाग़-ए-काएनात क्या गुल-ए-आलम नसीम-ए-फ़ज़्ल से ख़ंदाँ हुआ क़द्र रखता है सुलैमाँ से ज़्यादा मोर भी जो गदा दरवाज़े का तेरे हुआ सुल्ताँ हुआ याद से तेरी दिल-ए-नाशाद अपना शाद है ज़िक्र तेरा मेरे दर्द-ए-फ़िक्र का दरमाँ हुआ सर-बुलंदी में भी मुझ को फ़ख़्र की दौलत मिली अल्लाह अल्लाह किस क़दर मुझ पर तिरा एहसाँ हुआ हल्क़ा-ए-साहब-ए-दिलाँ में तेरा 'अहक़र' नाम है ये समझ ले चाक तेरा नामा-ए-इस्याँ हुआ