ख़ुश-रंग है गुल से गुल-ए-रुख़्सार तुम्हारा रैहाँ से सिवा ख़त है नुमूदार तुम्हारा मतलूब हो तुम दिल है तलबगार तुम्हारा ये आइना है तिश्ना-ए-दीदार तुम्हारा यूसुफ़ को कभी मुफ़्त भी लेती न 'ज़ुलेखा' नज़्ज़ारा जो करती सर-ए-बाज़ार तुम्हारा दामन का भी बोसा न लिया फ़र्त-ए-अदब से अब तक नहीं ये बंदा गुनहगार तुम्हारा गर्मी से जो ख़ुर्शीद-ए-क़यामत की जलेंगे याद आएगा ये साया-ए-दीवार तुम्हारा उश्शाक़ के सज्दों का भला ज़िक्र ही क्या है हिंदू-ओ-मुसलमाँ है परस्तार तुम्हारा तूती की तरह क्यूँ न सुख़न-संज हो 'अहक़र' है सामने आईना-ए-रुख़्सार तुम्हारा