नदी एहसास की चढ़ती रही है वफ़ा की राह में बढ़ती रही है किसी से जंग क्या लड़की करे वो जो अपने आप से लड़ती रही है बुलंदी पर पहुँच कर क्या वो पिघले पहाड़ों पर बरफ़ पड़ती रही है सितारा बन के तेरी राह में है जो अफ़्शाँ माँग से झड़ती रही है तुम्हारे हक़ में कैसे फ़ैसला दूँ अना मुझ से मिरी अड़ती रही है बचा कर क़ब्र से ले आए जिस को दर-ओ-दीवार में गड़ती रही है