नए फ़ित्नों के हर जानिब से इतने सर निकल आए ज़मीं पर जिस तरह सब्ज़ा नमी पा कर निकल आए बहुत होशियार लोगो इस नई तारीख़ के हाथों न जाने कब तुम्हारा घर किसी का घर निकल आए कहीं के फूल-पत्ते हैं कहीं के फल कहीं के हैं कुछ ऐसे पेड़ भी भारत की धरती पर निकल आए दर-ए-तक़दीस को जब वा किया तो क़स्र-ए-हुर्मत से बताऊँ क्या तुम्हें कि कितने सौदागर निकल आए तुम्हारा और तुम्हारे नज़्म का उस रोज़ क्या होगा कभी सोचा है दीवारों में जिस दिन दर निकल आए 'सआदत' आप इस दीदा-वरों की भीड़ में ढूँढें बहुत मुमकिन है उन में कोई दीदा-वर निकल आए