नफ़रत है फ़ज़ा में तो मोहब्बत भी बहुत है जीने के लिए दर्द की दौलत भी बहुत है है दस्त-ए-सितम-गर को अगर फ़ुर्सत-ए-आज़ार दुखियारों में दुख सहने की हिम्मत भी बहुत है कुछ शम्अ कि है हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ का जादू परवानों में कुछ शौक़-ए-शहादत भी बहुत है माइल-ब-करम भी हुआ करते हैं वो अक्सर ता'ज़ीर-पसंद अपनी तबीअ'त भी बहुत है हैं क़त्ल पे आमादा हमा-वक़्त वो उस के जिस के लिए आँखों में मुरव्वत भी बहुत है अब दस्त-ए-मसीहा की करामात हैं वो चंद मरहम भी है सामान-ए-जराहत भी बहुत है