तू भी हैरान-ओ-परेशाँ है थका हूँ मैं भी तेरे हमराह बहुत दूर चला हूँ मैं भी तू भी उस बुत की ज़ियारत का शरफ़ हासिल कर उस के क़दमों पे कई बार झुका हूँ मैं भी तू भी मसरूफ़ खिलौनों में है यादों से परे जी के बहलाने को कुछ ढूँड रहा हूँ मैं भी तेरा ही चर्चा नहीं शहर में बाज़ारों में कितने अख़बार-ओ-रसाइल में छपा हूँ मैं भी लोग दीवाना अगर कहते हैं तो सच है 'असद' अपने बारे में यही सोच रहा हूँ मैं भी