नफ़रत के साथ प्यार की मीठी तरंग है माँझा है काट-दार रंगीली पतंग है सूरज की इक किरन को तरसता है लफ़्ज़ लफ़्ज़ मेरी ग़ज़ल के चेहरे पे रातों का रंग है ज़र्रे की आब-ओ-ताब का पेचीदा कारोबार जिस की झलक को देख के सूरज भी तंग है मेरे ख़ुलूस के लिए उस में जगह कहाँ दिल उस का क़ब्र की तरह तारीक-ओ-तंग है होती है किस की जीत 'रज़ा' देखते रहो मौज-ए-ग़ज़ब की आज किनारे से जंग है