नफ़स नफ़स की मिली है मुझे सज़ा कैसी ये रेत रेत बिखरती हुई अना कैसी गुज़िश्ता ज़ख़्मों के टाँके तमाम टूट गए कोई बताए कि चलने लगी हवा कैसी सकूँ मिले किसी लम्हा न ये बिखर जाए अता हुई है मुझे ज़िंदगी ख़ुदा कैसी कभी कभी वो मुझे सुन के चौंक उट्ठेगा है जंगलों में भटकती हुई सदा कैसी 'शमीम' आप तो क़ाइल थे चुप पिघलने के लबों पे आज सिसकती हुई सदा कैसी