नफ़्य हुए थे सब इसबात मेरे दिन मेरे हालात आमदनी क्या शय है यार क्यूँ होते हैं इख़राजात ग़म शहनाई गूँजते ही आई यादों की बारात अदना सा इक मोहरा मैं जिस ने दी थी शह को मात बंद मिले जब घर के दर आँगन में जा लेटी रात बिखरा बिखरा मेरा शौक़ सिमटी सिमटी उस की ज़ात इस मौसम तक आई यार बीती रुत की ग़म सौग़ात दिल से तो निकली लेकिन होंटों पर आ ठहरी बात तन्हा सी मेरे कमरे में भीग रही है ख़ुद बरसात छोटी बहर के शे'रों में कहना मुश्किल पूरी बात