उस का जवाब मिलना जहाँ में मुहाल है वो हुस्न-ए-ला-जवाब ख़ुद अपनी मिसाल है ये और बात है कि न हों उन को इल्तिफ़ात वो ख़ूब जानते हैं हमारा जो हाल है तालिब कोई है एक करम की निगाह का कीजे न रद किसी का ये पहला सवाल है जितने हैं दूर उतने ही दिल के क़रीब हैं हम को तो दौर-ए-हिज्र भी दौर-ए-विसाल है हम बादा-कश तो मय को समझते हैं ज़िंदगी ऐ वाइ'ज़-ए-बुज़ुर्ग तिरा क्या ख़याल है दुनिया में बा-कमाल मिलेंगे गली गली मैं बे-कमाल हूँ यही मेरा कमाल है 'शाएक' तिरी नज़र की जवानी न जाएगी पिन्हाँ तिरी नज़र में किसी का जमाल है