नग़्मे ख़्वाबीदा हैं नालों का असर तक चुप है आप क्या चुप हैं फ़ज़ा हद्द-ए-नज़र तक चुप है शाम तक मै-कदा गुलज़ार-ए-सहर तक चुप है ज़िंदगी वक़्त की तज्दीद-ए-सफ़र तक चुप है साथ थे आप तो मंज़िल भी सदा देती थी अब ये आलम है कि हर राहगुज़र तक चुप है किस को आवाज़ दें इस बोलते सन्नाटे में जिस तरफ़ देखिए दीवार से दर तक चुप है आँख दरकार है जज़्बों को समझने के लिए चेहरा क्या कह सके जब दीदा-ए-तर तक चुप है बे-शुऊरों ने उठा रक्खी है दुनिया सर पर होश-मंदों की ज़बाँ क्या है नज़र तक चुप है किस से पूछूँ कि नशेमन मिरा किस ने फूँका बू-ए-गुल बाद-ए-सबा शाख़-ए-शजर तक चुप है दिल है ख़ामोश तो ख़ामोश है दुनिया सारी एक आलम है इधर से जो उधर तक चुप है 'शौक़' ज़िंदान-ए-जहाँ मंज़िल-ए-फ़रियाद नहीं इस ख़राबे में तो साँसों का सफ़र तक चुप है