लाला-ओ-गुल का लहू लाख बहाया जाए ये चमन छोड़ के हम से तो न जाया जाए फिर रहे हैं सभी चेहरों पे नक़ाबें डाले किस को हालात का आईना दिखाया जाए रंग पर जश्न-ए-बहाराँ जभी आ सकता है फूल काँटों में कोई फ़र्क़ न पाया जाए अपनी तहज़ीब ही इख़्लास-ओ-रवादारी है इस को हटने से ब-हर-हाल बचाया जाए सब बराबर के हैं हक़दार चमन-साज़ी में फिर किसे हर्फ़-ए-ग़लत कह के मिटाया जाए ख़ुद-बख़ुद क़ौम की तक़दीर सँवर जाएगी पहले बिगड़ा हुआ माहौल बनाया जाए जी रहे हैं सभी एहसास कुचल कर अपना अब किसे दर्द का एहसास दिलाया जाए सिर्फ़ हम उठ गए ऊपर तो कोई शान नहीं शान तो ये है कि गिरतों को उठाया जाए ख़ून बस्ता है तमन्नाओं का आँखें क्या हैं कौन सा ख़्वाब निगाहों में बसाया जाए आदमियत के चराग़ों की लवें तेज़ करो न हो ऐसा कि बदन छोड़ के साया जाए मंज़िलें ऐसी भी हैं फ़िक्र-ए-बशर से आगे जिन की हद में न इशारा न किनाया जाए 'शौक़' दिल नाम तो है एक चमन ज़ख़्मों का सिलसिला इस का मगर किस से मिलाया जाए