नहीं आराम एक जा दिल को आह क्या जाने क्या हुआ दिल को ऐ बुताँ मोहतरम रखो इस को कहते हैं ख़ाना-ए-ख़ुदा दिल को ले तो जाते हो मेहरबाँ लेकिन कीजो मत आप से जुदा दिल को मुँह न फेरा कभी जफ़ा से तिरी आफ़रीं दिल को मर्हबा दिल को ये तवक़्क़ो न थी हमें हरगिज़ कि दिखाओगे ये जफ़ा दिल को हैं यही ढंग आप के तो ख़ैर क्यूँ न फिर दीजिएगा आ दिल को आख़िर उस तिफ़्ल-ए-शोख़ ने देखा टुकड़े जूँ शीशा कर दिया दल को आज लगती है कुछ बग़ल ख़ाली कौन सीने से ले गया दिल को हम तो कहते हैं तुझ को ऐ 'बेदार' कीजो मत उस से आश्ना दिल को