न ग़म-ए-दिल न फ़िक्र-ए-जाँ है याद एक तेरी ही बर ज़बाँ है याद था जो कुछ वादा-ए-वफ़ा हम से कुछ भी वो तुम को मेहरबाँ है याद अगले मिलने की तरह भूल गए क्या बताऊँ तुम्हें कहाँ है याद हूँ मैं पाबंद-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद कब मुझे बाग़-ओ-बोस्ताँ है याद महव तेरे ही रू-ओ-ज़ुल्फ़ के हैं न हमें वो न ये जहाँ है याद दीदा-ओ-दिल में तू ही बसता है तुझ सिवा किस की और याँ है याद और कुछ आरज़ू नहीं 'बेदार' एक उस की ही जावेदाँ है याद