नहीं आसान तर्क-ए-इश्क़ करना दिल से ग़म जाना बहुत दुश्वार है चढ़ते हुए तूफ़ाँ का थम जाना ख़बर क्या थी सितम की पर्दा-दारी यूँ भी होती है बहुत नादिम हूँ जब से मक़्सद-ए-जोश-ए-करम जाना लिहाज़-ए-वज़्अ'-दारी में कभी मुमकिन न हो शायद तुम्हारा दो क़दम आना हमारा दो क़दम जाना हमें अंदाज़-ए-रिंदाना कभी गिरने नहीं देते जो साग़र सामने आया उसी को जाम-ए-जम जाना मिरा हर शेर 'अख़्तर' इक पयाम-ए-ज़िंदगी निकला मुझे दुनिया ने आख़िर मालिक-लौह-ए-क़लम जाना