नज़र से सफ़्हा-ए-आलम पे ख़ूनीं दास्ताँ लिखिए क़लम से क्या हिकायात-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ लिखिए मिटा दे जो फ़ज़ा की तीरगी माहौल की पस्ती कोई ऐसा भी शे'र ऐ शाइ'रान-ए-ख़ुश-बयाँ लिखिए बपा हैं हर जिहत में आतिश-ओ-आहन के हंगामे कहाँ इस दौर में जौर-ओ-जफ़ा-ए-महवशाँ लिखिए ख़तर-हा-ए-रह-ए-मजनूँ का क़िस्सा क्यूँ बयाँ कीजिए नज़र को नाक़ा-ए-लैला ख़िरद को सारबाँ लिखिए यही हैं यादगार-ए-ग़ुंचा-ओ-गुल इस ज़माने में इन्हीं सूखे हुए काँटों से ज़िक्र-ए-गुल्सिताँ लिखिए बयाँ करने को है तर्ज़-ए-तपाक-ए-दोस्ताँ काफ़ी अब इस दुनिया में क्या रंग-ए-ग़ुरूर-ए-दुश्मनाँ लिखिए रिवायात-ए-कुहन में दिलकशी बाक़ी नहीं 'अख़्तर' नए अंदाज़ से तारीख़-ए-शहर-ए-गुल-रुख़ाँ लिखिए