नहीं अपने तो बेगाने बहुत हैं जहाँ में आइना-ख़ाने बहुत हैं परेशाँ क्यों हो मेरे हम-रिकाबो मिरे ग़म को मिरे शाने बहुत हैं ज़माने भर की हुज्जत के मुक़ाबिल फ़क़त तस्बीह के दाने बहुत हैं अभी से आप हिम्मत हार बैठे अभी इल्ज़ाम सर आने बहुत हैं हमें रक्खा है किस दर्जे में साहिब सुना है आप के ख़ाने बहुत हैं किसी को शाम की है फ़िक्र लाहक़ किसी को शौक़ फ़रमाने बहुत हैं इसी का नाम 'पैकर' ज़िंदगी है मराहिल सामने आने बहुत हैं