इंसान कोई भी तो फ़रिश्ता बना नहीं सच पूछिए तो कोई यहाँ बे-ख़ता नहीं वो जिस को अपने दिल का फ़साना सुना सकें हम को तो कोई शख़्स अभी तक मिला नहीं चेहरा बदल बदल के वो आया है बार-बार वो हो किसी भी चेहरे में मुझ से छुपा नहीं कश्ती को तू ने छोड़ दिया यूँ ही नाख़ुदा क्या तू समझ रहा है हमारा ख़ुदा नहीं क़ाएम रहे जो तौबा पे साक़ी के रू-ब-रू ऐसा तो मय-कदे में कोई पारसा नहीं हम हैं क़ुसूर-वार हमें ए'तिराफ़ है तोहमत लगाने वाले भी तो देवता नहीं वो बेवफ़ा था छोड़ के मुझ को चला गया मैं भूल जाऊँ उस को मगर भूलता नहीं उस के क़रीब जाऊँ तो मिलता नहीं है वो और दूर हो भी जाऊँ तो मुझ से जुदा नहीं 'ज़ेबी' रफ़ीक़ होते हैं सब अच्छे दौर के जब वक़्त हो कड़ा कोई पहचानता नहीं