नहीं देते किराया साल भर से कहो उन से कि निकलें मेरे घर से मरी जाती हूँ सोहबत के असर से झुका जाता नहीं अब तो कमर से दुआएँ कर रही हूँ साल-भर से इलाही जल्द आएँ वो सफ़र से तुम्हें तब क़द्र होगी आबरू की गुज़र जाएगा जब पानी कमर से नहीं अच्छे ये फ़ाक़े तीस दिन के मियाँ रमज़ान निकलें मेरे घर से गिरी थी बच गई मस्जिद से गुय्यां फिरी हूँ मैं ख़ुदा के आज घर से तिरा लड़का तमाशे का है नर्गिस ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे बद-नज़र से किसी के कहने सुनने पर न जाओ न जब तक देख लो अपनी नज़र से कहे ये कौन राजा जी से ढाँको खिसक आया है पाजामा कमर से गिला आँखों का पलकों से करोगे गिरा दूँगी अगर तुम को नज़र से ख़ुशी इस की है मुझ को ऐ दोगाना मिला है घर मिरा 'शैदा' के घर से