नहीं आसान ऐ बेटा कोई इंसान कामिल हो पढ़ा लिक्खा बहुत कुछ फिर भी तुम जाहिल के जाहिल हो कोई ऐसा भी जोरू की तरफ़ से नौज ग़ाफ़िल हो ये कैसे तुम पढ़े लिक्खे हो बेटा कैसे आक़िल हो बुआ मिट्टी है घर में सोने चाँदी की अगर सिल हो मज़ा तो ज़िंदगी का जब है कुछ दौलत हो कुछ दिल हो भला चावल भी ऐसी कोई ने'मत थी न देती मैं मिरी भित्ति में काम आए बुआ घर में जो इक तिल हो वही है दुश्मन ऐ बाजी जो अच्छे वक़्त में लिपटे वही है दोस्त ऐ बाजी मुसीबत में जो शामिल हो निकल तो आई हो बाहर महल से छुप छुपा कर तुम किसी की आँख पड़ जाए तो बेगम कैसी मुश्किल हो निवाले के लिए कुत्ता भी घर घर घूम फिर आया पड़े हो हड्डियाँ डाले अजी तुम कैसे काहिल हो मिरे हिस्से में कैसे सौत की तक़दीर आ जाए तुम्हारे काम की वो है मियाँ तुम उस के क़ाबिल हो इसी का नाम दुनिया है कोई उजड़े बसे कोई कहीं महलों में मातम हो कहीं घूरे पे महफ़िल हो फ़लक पर किस तरह सीढ़ी लगा कर कोई चढ़ जाए जहाँ देखो फ़रिश्ते की तरह तुम सर पे नाज़िल हो न डाले बोझ बेटी का ख़ुदा दुनिया में दुश्मन पर पहाड़ इक सर पे रक्खा हो बुआ छाती पे इक सिल हो किए की लाज मुझ को है किए की शर्म तुम को है इसी की मैं भी क़ाइल हूँ इसी के तुम भी क़ाइल हो उभारें औरतें तुम को दबाएँ औरतें तुम को गरेबानों में मुँह डालो मुओ तुम अब तो क़ाइल हो बुढ़ौती में जवानी की कहानी से फट पड़ें नींदें कड़ी है धूप सर पर आँख खोलो कैसे ग़ाफ़िल हो कहानी तुम ने गेहूँ की जो दस्तरख़्वान पर छेड़ी सभों को हो गया धोका कि तुम भी कोई कामिल हो तुम्हारी रेख़्ती में सहल हो जाता है सब आकर कोई मज़मून ऐ 'शैदा' जो मुश्किल से भी मुश्किल हो